तरावीह की रक्अत(Taraavi Ki Rakaat)Sahee Ahadees















  Taraveeh Ki Rakaat ke ahaadees ke bareme jaante Hain.

लफ़्ज़ तरावीह का इस्तिमाल हुज़ूर ﷺ के दौर में राइज ना था। तरावीह की नमाज़ में चार रक्अत के बअ्द कुछ देर का वक़्फ़ा या इस्तिराहत होती है। इसी मुनासिबत से लफ़्ज़ तरवीहह से तरावीह का लफ़्ज़ बना और आम मुसलमानों में राइज हुवा। कुतुबे अहादीस़ में भी यह लफ़्ज़ कहीं नज़र नहीं आता। मुहद्दिसीन इसे क़ियामे रमज़ान, क़ियामुल्-लैल, सलाते रमज़ान और सलातुत् तहज्जुद के नाम से ज़िक्र करते हैं। अक्सर शारेहीने हदीस और मुतरजिम हज़रात लोगों को समझाने के लिए अहादीस़ के तर्जुमों में लफ़्ज़ तरावीह ही लिखते हैं। लेकिन कुतुबे फ़िक़्ह और कुतुबे अहादीस़ में अबवाबे हदीस में लफ़्ज़ तरावीह नज़र नहीं आता मसलन मुसन्निफ़ हिदाया ने तरावीह के लिए हिदाया में क़ियामे रमज़ान का बाब क़ायम किया है। इमाम अबू हनीफ़ह रहिमहुल्लाह के शागिर्द इमाम मुहम्मद रहिमहुल्लाह ने भी तरावीह के लिए क़ियामे रमज़ान का उनवान क़ायम किया है। इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह ने बुख़ारी शरीफ़ में क़ियामुन् नबी ﷺ फ़ी रमज़ान का बाब क़ायम किया है। अल्लामह ऐनी रहिमहुल्लाह शारेह बुख़ारी ने कंज़ुद् दक़ाइक़ के अरबी हाश्ये में तरावीह को सलातुल् लैल के नाम से मौसूम किया है। इमाम तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने जामेअ् तिर्मिज़ी में मा जाअ् फ़ी वस्फ़ सलातुन् नबी ﷺ बिल् लैल का बाब क़ायम किया है। मुहद्दिस इमाम मरवज़ी रहिमहुल्लाह ने किताबुल् वित्र और इमाम इब्न ख़ुज़ैमह रहिमहुल्लाह ने सहीह इब्न ख़ुज़ैमह में तरावीह के लिए लफ़्ज़ वित्र का उनवान क़ायम किया है। इमाम अबू बक्र इब्न अबी शैबह रहिमहुल्लाह ने मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबह में फ़िस् सलाह रमज़ान के अल्फ़ाज़ लिखे हैं। तरावीह की हदीस पर बुख़ारी शरीफ़ में इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह ने किताबुत् तहज्जुद का उनवान बांधा है। यानी इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह ने किताबुत् तहज्जुद में क़ियामे रमज़ान या तरावीह की हदीस नक़्ल की है, यह इस बात की दलील है कि तरावीह, क़ियामुल्-लैल, क़ियामे रमज़ान और तहज्जुद यह सब एक ही नमाज़ के अलग अलग नाम हैं, मगर नमाज़ एक ही है। ग़ैर रमज़ान में यह तहज्जुद कहलाती है और रमज़ान में क़ियामुल्-लैल, क़ियामे रमज़ान या सलाते रमज़ान या तरावीह।

रकआत की बहस:
तरावीह या तहज्जुद या क़ियामुल्-लैल या क़ियामे रमज़ान की कुल कितनी रकातें सुन्नत हैं? अस्ल बहस यही है। अहादीस़ के मुताले से पता चलता है कि हुज़ूर ﷺ रमज़ान हो या ग़ैर रमज़ान आप ﷺ ग्यारा रकआत से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे। इन ग्यारा रकआत में आठ रकआत नफ़्ल क़ियामुल्-लैल की होती थीं और तीन रकआत वित्र की। इस सिलसिले में अहादीस़ मुलाहिज़ा हों।

पहली हदीस:
अबू सलमह बिन अब्दुर् रहमान ने हज़रत आइशा रज़ियल्लाहू अन्हा से पूछा कि रसूलुल्लाह ﷺ (तरावीह या तहज्जुद या क़ियामुल्-लैल की नमाज़) रमज़ान में कितनी रकातें पढ़ते थे? हज़रत आइशा रज़ियल्लाहू अन्हा ने फ़रमाया कि रमज़ान हो या ग़ैर रमज़ान आप ﷺ ग्यारा रकातों से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे। आप ﷺ पहले चार रकातें पढ़ते, तुम उनकी ख़ूबी व हुस्न और तूल का ना पूछो, फिर चार रक्अत पढ़ते, उनके भी ख़ूबी व हुस्न और तूल का हाल ना पूछो। और आख़िर में तीन रक्अत (वित्र) पढ़ते थे। (हज़रत आइशा रज़ियल्लाहू अन्हा कहती हैं) मैंने एक बार पूछा या रसूलुल्लाह ﷺ क्या आप वित्र पढ़ने से पहले सो जाते हैं? आप ﷺ ने फ़रमाया आइशा? मेरी आँखें सोती हैं, लेकिन मेरा दिल नहीं सोता। (सहीह बुख़ारी शरीफ़, हदीस नंबर 1877)

दूसरी हदीस:
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने हम लोगों को रमज़ान के महीने में (तरावीह या क़ियामे रमज़ान या तहज्जुद) की आठ रकआत नमाज़ पढ़ाईं। इसके बअ्द (तीन) वित्र पढ़ा। दुसरे रोज़ जब रात हुई तो हम लोग फिर मस्जिद में जमा हो गए। उम्मीद थी कि रसूलुल्लाह ﷺ निकलेंगे और नमाज़ पढ़ाएंगे, मगर आप ﷺ नहीं निकले। हम लोग सुबह तक मस्जिद में ही इन्तिज़ार करते रह गए। फिर रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत में हम लोग गए और यह बात बयान की। तो आप ने फ़रमाया कि मुझे ख़तरा हुवा कि कहीं यह नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ ना हो जाए। (इसलिए घर से नहीं निकला) (सहीह इब्न हिब्बान व सहीह इब्न ख़ुज़ैमह, तबरानी) (तिर्मिज़ी, नसाई और अबू दावूद वग़ैरा की रिवायत में मज़ीद वज़ाहत है कि हुज़ूर ﷺ ने सहाबा किराम को यह नमाज़ 23 वीं, 25 वीं और 27 वीं शब को पढ़ाई थीं।)

तीसरी हदीस:
हज़रत उबैय बिन कअ्ब रज़ियल्लाहू अन्हु रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत में आए और कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! रात को मैंने (अपनी समझ से) एक काम कर दिया। यह रमज़ान महीने का वाक़िया है। आ हज़रत ﷺ ने पूछा क्या बात है? उबैय बिन कअ्ब रज़ियल्लाहू अन्हु ने कहा कि मेरे घर की औरतों ने कहा कि हम लोगों को क़ुरआन याद नहीं है, लिहाज़ा तरावीह (क़ियामे रमज़ान) की नमाज़ आप घर ही पढ़िए। हम भी आप के पीछे पढ़ लेंगी। चुनांचे मैंने इन को आठ रकातें और इसके बअ्द वित्र के साथ नमाज़ पढ़ा दी। (यह सुन कर) रसूलुल्लाह ﷺ ख़ामोश रह गए और ऐसा मालूम हुवा कि आप ﷺ ने इसको पसन्द फ़रमाया। (मुसनद अबू याला, तबरानी फ़िल् औसत, मजमउज़् ज़वाइद ज 2, स. 74)

तशरीहात:
पहली और दूसरी दोनों हदीसों में रसूलुल्लाह ﷺ के अमल का बयान है कि आप ﷺ ने रमज़ान में तरावीह की आठ रकआत पढ़ीं और पढ़ाईं। इसके बअ्द वित्र अदा फ़रमाया। यह रसूलुल्लाह ﷺ की फ़अ्ली सुन्नत हुई। तीसरे हदीस में हज़रत उबैय बिन कअ्ब रज़ियल्लाहू अन्हु का वाक़िया मज़्कूर है कि उन्होंने अपने घर की औरतों को आठ रकआत तरावीह पढ़ाईं और फिर रसूलुल्लाह ﷺ के सामने इस वाक़िए को बयान किया। आप ﷺ ने सुन कर ख़ामोशी इख़्तियार की। यानी इसका इनकार ना किया और ना ही इस पर एतराज़ किया। इसका वाज़ेह मतलब यह हुवा कि यह आप ﷺ को पसन्द था। इस तरह से फ़ेअ्ले नबवी ﷺ और तक़रीर नबवी ﷺ दोनों से आठ रकआत तरावीह का सुन्नते नबवी होना साबित हो जाता है। (अनवारुल् मसाबीह स. 21)

तरावीह और हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु:
साइब बिन यज़ीद रज़ियल्लाहू अन्हु कहते हैं कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु से उबैय बिन कअ्ब और तमीम दारी रज़ियल्लाहू अन्हु को हुक्म दिया कि लोगों को ग्यारा रक्अत (आठ रक्अत तरावीह और तीन वित्र) पढ़ाएं।(मुवत्ता इमाम मालिक, स.100, आसारुस् सुनन ज.2, स.52) मल्हूज़ रहे कि बअ्ज़ लोग हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु की तरफ़ यह बात मंसूब करते हैं कि उन्होंने ही लोगों को बिस रकआत पर अमल करने की तल्क़ीन की। मगर यह बात क़तअन ना दुरुस्त है। जैसा कि मज़कूरा बाला साइब बिन यज़ीद रज़ियल्लाहू अन्हु की रिवायत से साफ़ तौर से बीस रकआत का रद्द होता है और इसी रिवायत से यह भी साबित होता है कि फ़रमाने फ़ारूक़ी यही था कि लोग आठ रकआत तरावीह व तीन वित्र ही अदा करें। अलबत्ता मुवत्ता इमाम मालिक में इसी रिवायत के फ़ौरन बअ्द बीस रकआत की रिवायत भी दर्ज है मगर वह सहीह नहीं। वह रिवायत इस तरह है कि यज़ीद बिन रूमान रहिमहुल्लाह कहते हैं कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के ज़माने में लोग तेईस रकआत तरावीह पढ़ते थे। (मुवत्ता इमाम मालिक) क़ारईन इन दोनों रिवायतों को ग़ौर से पढ़ें। यह दोनों ही रिवायतें मुवत्ता इमाम मालिक की हैं। पहली रिवायत में हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु का हुक्म है कि लोग 8 रक्अत तरावीह और तीन वित्र पढ़ें। दूसरी रिवायत में ज़िक्र है कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के ज़माने में लोग बीस रकआत तरावीह और तीन वित्र पढ़ते थे। ज़ाहिर सी बात है कि अव्वलियत तो बहर हाल हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के हुक्म को ही दी जाएगी। क्यूंकि यह हुज़ूर ﷺ की फ़अ्ली और तक़रीरी सुन्नत के मुताबिक़ है। इसके बरख़िलाफ़ दूसरी रिवायत जो कि यज़ीद बिन रूमान रहिमहुल्लाह की है, इसमें लोगों का अमल दर्ज है। और सुन्नते नबवी ﷺ और सुन्नते सहाबा के मुक़ाबले में लोगों का अमल हुज्जत नहीं है। इसके अलावा यज़ीद बिन रूमान की रिवायत सनदन भी सहीह नहीं है। क्=
=न रहिमहुल्लाह ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु का ज़माना नहीं पाया (हवाला:नसबुर् राया जिल्द नंबर 1/294, उम्दतुल् क़ारी जिल्द 2, स. 804) लिहाज़ा यह रिवायत सनदन मुनक़ते है और लायक़े हुज्जत नहीं। बीस रकआत तरावीह की और भी रिवायात हैं मगर उन सब पर मुहद्दिसीन का कलाम है और जरह साबित है। 20 रकआत तरावीह की एक भी सहीह व सरीह रिवायत कुतुबे हदीस में मौजूद नहीं। इसके बरख़िलाफ़ 8 रकआत तरावीह और तीन वित्र की मुताद्दिद सहीह अहादीस़ हैं, जिन में से कुछ हमने पेश की हैं और बक़िया ख़ौफ़े तवालत से दरगुज़र करते हैं। अल्लाह तआला हम सबको सुन्नते सहीहा के मुताबिक़ अमल करने की तौफ़ीक़ करे। आमीन
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